सिंघेश्वर और महाशिवरात्रि।

   (मुख्य मंदिर बाबा सिंघेश्वर नाथ, मधेपुरा(बिहार)

            (मुख्य द्वार बाबा सिंघेश्वर मंदिर )

आज हम सभी महाशिवरात्रि का पावन त्योहार मनाएंगे।
मेरा शोभाग्य है कि में बाबा सिंघेश्वर नाथ के पावन धरती पर जन्म लिया। में आपको सिंघेश्वर के इतिहास के विषय मे जानकारी देना चाहता हूं।
कोशी के मध्य क्षेत्र में विराजित बाबा सिंघेश्वर नाथ शिवलिंग की प्राचीनता का काल निर्धारण अभी तक सुनिश्चित नही हो पाया है।
प्रशिद्ध लेखक श्री हरिशंकर श्रीवास्तव "शलभ" द्वारा रचित पुस्तक "शैव अवधारणा" और "सिंघेश्वर स्थान" विद्वानों की शवेशना कि मंजिल की और अग्रसर होने की दिशा में मिल का पत्थर सिद्ध होगा।

मंदिर का संचालन करने वाला स्वामित्व न्यास श्री सिंघेश्वर मंदिर न्यास समिति है, उसने वर्ष 1999ई० में एक स्मारिका जारी की थी। उसमें ये उल्लेख किया गया है।
"प्राचीन देवस्थलों की व्यवस्था का एक सा ही इतिहास रहा है। उनके प्रारंभिक काल मे उसकी देखरेख, व्यवस्था एव पूजा पाठ वहां के स्थानीय मूल निवासी ही करते रहे है। पर उन देवस्थलों की सिद्धि और ख्याति को सुनकर बाद में वहां पुजारी, पंडित और पंडा समाज पहुँच जाते है और धीरे धीरे वहां की व्यवस्था पर अपनी चतुराई से हावी होकर स्वयं पूजा पाठ के प्रभारी बन जाते है। सिंघेश्वर का शिवलिंग भी इसका अपवाद नही है। श्री सलभ ने अपनी उक्त पुस्तिका में लिखा है कि यहां के प्राचीन निवासी व्रात्य थे जो द्विजाति और उपनयन से च्युत थे। वे ब्राह्मणों के यज्ञ, पशु बलि और खर्चीले कर्मकांड के घोर विरोधी थे। वे शिवभक्त थे। 
शिव के पावन नगरी सिंघेश्वर की स्वतंत्रता आंदोलन में भी बड़ी भूमिका थी, जिसका उल्लेख श्री डॉ भूपेंद्र ना०यादव ने अपनी आलेख में किया। 
ये सभी बाते सिंघेश्वर के इतिहास के विषय मे थी। अब आपको हम महाशिवरात्रि के विषय मे बताऊंगा, शिवरात्रि से लगातार चार दिनों तक प्रातः आरती नही होती है। लेकिन दोपहर और रात्रि आरती जारी रहती है।
शिवरात्रि के दिन मंदिर में बहुत भीड़ रहती है ।
और मंदिर न्यास के आदेशानुसार दोपहर 3 बजे शिव जी का चांदी की प्रतिमा को बारात के लिए सजाकर मंदिर के गर्व गृह ले जाया जाता है। इसकी निगरानी न्यास करती है। उसके बाद गर्व गृह में पंडा समाज कई स्तुति, और अन्य स्त्रोत का उच्चारण किया जाता है। तत्पश्चात बाबा के प्रतिमा और शिवलिंग को गुलाल से भर दिया जाता है।
उसके बाद न्यास के पदाधिकारी द्वारा बारात रवाना किया जाता है। उसके बाद बाबा की बारात मंदिर परिसर से गौरीपुर (जहाँ मा पार्वती विराजमान है) वहा बारात जाती है।
वहां विधि विधान से पूजा के बाद बाबा की प्रतिमा वापस मंदिर आ जाती है। जिसे की मंदिर प्रांगण में स्थित मां पार्वती के मंदिर में रखा जाता है। उसके बाद बाबा की शिवलिंग का श्रृंगार और शादी की प्रक्रिया शुरू की जाती है। और श्रृंगार के पश्च्यात दूल्हे वाली पगड़ी पहनाई जाती है। ये पूजा लगातार चार दिनों तक यानी चौटारी तक होती है। और इसके बाद आरती की जाती है। फिर माँ पार्वती मंदिर में बाबा और मैया की फेरे होते है। और अन्य विशेष पूजा होती है। उसी दिन से विश्व विख्यात सिंघेश्वर मेले का प्रारंभ होता है। जो लगभग 1 महीने तक चलता है।
महाशिवरात्रि के एक दिन बाद जलधरी होता है इस दिन सभी श्रद्धालु आधी रात से बाबा के पट खुलने बाद जल अर्पण करते है। ऐसे ही ये पावन पर्व समाप्त होता है।
आप सभी को महाशिवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं।- हर्ष

Comments

Popular posts from this blog

अफगानिस्तान में तालिबान।

Uniform Civil Code Need Of Hour or The Matter Of Poltics.